On 26 January 1950, the name of this state was duly accepted as Rajasthan.
The first Rajpramukh of the state became Sawai Mansingh, Maharaja of Jaipur and the first Prime Minister (Chief Minister), Shri Hiralal Shastri. After the general elections held in 1952, Shri Tikaram Paliwal became the first elected Chief Minister
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सन् 1800 ई.में "जार्ज थामस" ने राजस्थान के इस भाग के लिए ‘राजपुताना’ की संज्ञा दी। इस बात का उल्लेख विलियम फ्रेंकलिन की पुस्तक "मिलिट्री मेमोरी" में आता है।
कर्नल जेम्स टॉड ने इस राज्य को “रायथान” कहा क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल में राजाओं के निवास के प्रान्त को ‘रायथान’ कहते थे। 19 वी. सदी में कर्नल जम्स टाॅड ने अपनी पुस्तक “एनाॅल्स एंड एटीक्विटिज आॅफ राजस्थान” मेे राजस्थान शब्द का प्रयोग किया। इस पुस्तक का दूसरा नाम “सैण्ट्रल एंड वेस्टर्न स्टेट्स आॅफ इंडिया” है।
इस पुस्तक का पहली बार हिन्दी अनुवाद राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर- हीराचंद ओझा ने किया। इसे हिन्दी में "प्राचीन राजस्थान का विश्लेषण" कहते है।कर्नल जेम्स टाॅड 1818-1821 के मध्य मेवाड़ (उदयपुर) प्रांत में पोलिटिकल ऐजेन्ट थे। उन्होने अपने घोडे़ पर बैठकर घूम-घूम कर इतिहास लेखन किया अतः कर्नल जम्स डाॅड को घोडे वाला बाबा के नाम से भी जाना जाता है।
30 मार्च,1949 को चार बड़ी रियासतों - जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर एवं बीकानेर का राज्य में विलय होने के बाद वृहत राजस्थान का गठन हुआ। तभी से 30 मार्च को ‘राजस्थान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
26 जनवरी 1950 को विधिवत् रूप से इस प्रदेश का नाम राजस्थान स्वीकार किया गया।
राज्य के पहले राजप्रमुख जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह एवं प्रथम प्रधानमंत्री(मुख्यमंत्री) श्री हीरालाल शास्त्री बने। 1952 में हुए आम चुनावों के बाद प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री श्री टीकाराम पालीवाल बने।
1 नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन के बाद राजप्रमुख का पद समाप्त कर दिया व राज्यपाल का पद सृजित हुआ। सरदार गुरूमुख निहालसिंह राज्य के पहले राज्यपाल(मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया) बने।
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